Monday, January 14, 2013


तुम भी खाओ हम भी खाएं, बन के पूरे पागल,
अभी तो सारा देश पड़ा है, बहुत बचे हैं जंगल।
जनता को रोटी के चक्कर में, कर डालो पागल,
रोते-रोते सो जायेगी सुसरी, नहीं करेगी दंगल।
हमने खाया, खूब पचाया, बैगन हो या बड़हल,
जनता मांगेगी तो दे देंगे, उसको बासी गुड़हल।
कपड़े सारे नोच लिये हैं, बचा ये हमरा आंचल,
इस पर आँख जमा रखी है, घूर रहे हो प्रतिपल।
पैरों में पड़ गयी बिवाई, दृष्य हो गया बोझिल,
वोट मांगने फिर से आ गये, लेकर पूरी बोतल।
मजा बड़ा अब आ रहा है, बजा रहे हो करतल,
थोड़ी सी तो कसर छोड़ दो, हो तुम कैसे अंकल।
आओ खेले करके फिक्सिंग, दिखे हो जैसे दंगल,
साथ-साथ रहेंगे हम सब, सोम हो या हो मंगल।
माल मजे का उड़ा के भइया, जनता को दो डंठल,
देखो फांका काट रहे हैं, हड़प के नोट के बंडल।
सड़क बनायी, बांध बनाया, सभी बनाया अव्वल,
हर ठेके में खूब कमाया, बरसे नोट के बंडल।।

Friday, January 4, 2013

धोती कुरता

नये साल पर एक मित्र का मैसेज मिला:
हम संवतसर का भूलि गयन,मुल इसवी का हैप्पी हैप्पी,
जब मिलैं तो बोलैं हाय हाय,मोबाइल पर हैप्पी हैप्पी।
अंगरेज गये सालन हुइगे,उइ अइसन पाठ पढ़ाय गये,
पच्चीस दिसम्बर से लइके पहली तक बस हैप्पी हैप्पी।
है संवतसर पुल्लिंग भवा औ इसवी इस्त्रीलिंग हवै,
नारी पूजै देउता आवैं सब बोलि रहे हैप्पी हैप्पी।।
मेरा उत्तर रहा: 
उइ भूलि गये धोती कुरता औ पहिनै लागे सूट बूट,
हिंदी ब्वालै मा रपट जायँ मुल अंगरेजी मा रहे लूट।
भा किचन गारडेन घर घर मा उइ उपबन जंगल भूलि गये,
उइ भूलि गये मड़ई छप्पर औ कथरी कंबल भूलि गये।
चम्मच ते चटनी उइ चाटैं औ कुल्हड़ पत्तल भूलि गये,
जब ब्लाक ब्लाक धरि बनैं महल उइ गारा कत्तल भूलि गये।
जब ज्वार महँग भा गोहूँ ते तब चना बाजरा भूलि गये,
कंपूटर बाँचै लगा भाग उइ पोथी पतरा भूलि गये।
इतवार शनीचर याद किहिन प्रतिपदा दुतीआ के पूछै,
जनवरी फरौरी के समहें सावन अगहन तौ भें छूछै।
चूल्हा चक्की सिल औ लोढ़ा हुइ गये नदारद जब भइया,
मम्मी डैडी कै जुग आवा के कहै भला बप्पा मइया।
कारन मा कुक्कुर घूमै जब इंजक्सन जब झेलै गइया, 
अइसन मा बात स्वदेसी कै अच्छी कइसे लागै भइया।
तख्ती बुदगा लदिगे कबके चिट्ठी पत्री के लिखै आज,
ईमेल फैक्स मोबाइल ते जब चलै लाग सब राज काज।
शक संबत भा या इसबी भा बिकरम संबत भा खिजरी बा,
तारीख पहिल भा इकतिस का संडे मंडे का मिसरी बा?
कइसन कइसन बा सोच के उइ दिन गिनै मन्थ मा वीकन मा,
फिर इसबी सन् ते काहे चिढ़ अब खुसी मनावा लरिकन मा।।