Monday, August 5, 2013

दुर्गाशक्ति नागपाल

कालिदास ने रघुवंश में कहा -" फलानुमेयाः प्रारम्भाः संस्काराः प्राक्तना इव " अर्थात् कार्य को देख कर कारण को समझा जा सकता है।  कालिदास ने यहाँ जिन पूर्व संस्कारों की चर्चा की वह दुर्गाशक्ति नागपाल के निलंबन
के संदर्भ में दुर्गा के संस्कारों के साथ ही अखिलेश,मुलायम,शिवपाल,आजम और नरेश अग्रवाल के बयान उनके
कुसंस्कारों,कर्मों - कुकर्मों का परिचय दे देते हैं। इसी लिये मानता हूँ कि दुर्गा का नामकरण उसके माता पिता ने अच्छे ग्रह नक्षत्रों में किया कि दुर्गाने अपने नाम के अनुसार जिस साहस का परिचय दिया उससे उनका भी जीवन धन्य धन्य हो गया। रमजान के जिन पाक दिनों में मुलायम के कुनबे ने जो नापाक साज़िश रची वह भी धरी की धरी रह गयी ।

बात की है बात यारा,आदमी है क्या बला,इस जमाने में शराफत यार सोना हो गया ।
हर गली कूचे में बैठी बुतपरस्तों की जमात, आदमीयत का ठिकाना एक कोना हो गया।
हाय पैसा हाय कुर्सी, है कहाँ इंसानियत !आज मिड डे मील तक ईमान बौना हो गया।
मस्जिदें मंदिर न बनते ईंट गारे से कभी,वोट की ख़ातिर यही तकिया बिछौना हो गया।
क्यों चलें सच की डगर पर लोग,क्यों कटुता न हो,झूठ मक्कारी बढ़ी जब सत्य पौना हो गया।
धन्य हैं सत्येन्द्र-मंजूनाथ-दुर्गा-खेमका,जब मुलाजिम आज बिन पेंदी भगौना होगया।
कौन आजम कौन जाजम कौन है मोजा बना,रूठ बैठे अमर उनका फिर से गौना हो गया।
जया पर विजया चढी है बोलती तक बन्द है,नाम तो है नयनसुख सरदार मोना हो गया।
यहीं हैं धृतराष्ट्र पट्टी बाँध गाँधारी यहीं हैं,पाँच में भरपेट खाने का ठिकाना हो गया।
ईद की ईदी यही है,हम गले मिल कर चलें,हमको लड़वाने का जब धंधा  घिनौना हो गया।