Saturday, December 12, 2015

कोर्ट-कचेहरी वाला गुस्सा !

नये साल में नयी कहानी घटने वाली है,
इनकी मँहगी दाल कि उनकी पूरी काली है।
बड़ी पुरानी है यह गाड़ी पहिये गले हुये,
भ्रष्ट आचरण के हैं दीमक जिसमें लगे हुये।
टूजी कामनवेल्थ घोटाले पड़े पुराने हैं,
अब तो यंग इण्डिया तक में फँसे सयाने हैं।
सीएजी ने फिर से खोले नये घोटाले हैं,
कहाँ कहाँ भागेंगे बबुआ जीजा-साले हैं।
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कोर्ट-कचेहरी वाला गुस्सा संसद झेल रही,
खिसियानी बिल्ली-बिल्लों को जनता देख रही।
जनता ने धकिया कर जिनको किया किनारे है,
वही रोज हुड़दंग मचाते बहुत बिचारे हैं।
लेन देन में भी तो यारों नैतिकता रहती है!
राजनीति में धंधेबाजी जनता कब सहती है!!
बिन पेंदी के लोटे हैं ये उल्टी थाली हैं,
धरम न इनका कोई इनकी करनी काली है।
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इशरत की खुल रही कहानी तीस्ता कहाँ गयीं?
कहाँ गये इशरत के चाचा वृन्दा कहाँ गयीं??
कई घुटाले खुलने बाकी परदे उठने हैं,
टूट रहे हैं सपने सारे टूटे टखने हैं।
देखो सन् सोलह में क्या क्या होने वाला है!
कौन हँसेगा कौन बिचारा रोने वाला है!! 

 उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे
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अंधें बाँटें रेवड़ी बहरे रहे बटोर।रश्दी की बेइज्जती कहीं न कोई शोर।।1।।
तस्लीमा के दर्द को समझ न पाया वाम।पर वे बड़े सहिष्णु हैं जय जय सीता राम।।2।।
मन माफिक  मनमाफिया कर न सके वो काम।जिनकी किरपा से मिले बारम्बार इनाम।।3।।
ये अशोक से कवि बड़े लेखक कई महान।उपन्यास विन्यास में लगा लगा जी जान।।4।।
तलुवे घिस करते रहे जो नित नये प्रयास।लोकार्पण के बाद ही पूरी हुई छपास।।5।।
कुछ काले काला करें कलाकार का भेस।जिनपर अब भी चल रहे कई तरह के केस।।6।।
अपनेपर उपकार का चुकता करने कर्ज़। हैं अवार्ड लौटा रहे निभा रहे हैं फर्ज़।।7।।
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नदिया उल्टी बह चली उल्टी बही बयार।मन उचाट रहने लगा जब बदली सरकार।।8।।
दो सौ से चालीस गज सिमट गयी कालीन।मिली धूल में हेकड़ी बनते हैं शालीन।।9।।
लुटिया डूबी वाम की चल न सका छल छन्द,दोनों दल दल-दल हुये दोनों के मुँह बन्द।।10।।
बैठ मंथरा ने किया चमचों का आह्वान।जाओ सब जा कर करो सबकी नींद हराम।।11।।
"देखो पिछले साल के मोदी के कुछ काम।कुछ दिन में दिख जायेंगे उनके शुभ परिणाम।।12।।
मुश्किल में पड़ जायेगी हम सब की तब जान।उससे पहले है हमें करना काम तमाम।।13।।
असंतोष असहिष्णुता का कर करके जाप।जनता को भरमाइये कुछ तो करिये आप !!14।।
जिनको बाँटी रेवड़ी जिनको दिये इनाम।उन चमचों से बोलिये शुरू करें कुछ काम।।15।।
गुहा रोमिला को मिलो उनके फूँको कान।टुकड़े फेंक बुलाइये कहाँ गये इरफान??16।।
बोलो यदि फिर से गया लिखा नया इतिहास।इनकी भद पिट जायगी घुट जायेगी साँस।।17।।
खुल जायेगी पोल सब होगा नया हिसाब।रद्दी में बिक जाँयगी इनकी सभी किताब।।18।।
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सिर नवाय कर बन्दना निकल पड़े कुछ वीर।ये शर्मा आनन्द हैं चौबे दूबे पीर।।19।।
सिब्बल और चिदम्बरम् ये गुलाम-आजाद।मणिशंकर जयराम तक तब पहुँची फरियाद।।20।।
जोशी पटवर्धन सदृश जो जन थे गुमनाम,झंडा जिनका लाल है नारा जिनका वाम।।21।।
आगे आगे चल रहे पीछे है बारात,पैसे रखकर जेब में करें त्याग की बात।।22।।
मंतर फूँके कान में वृन्दा- सीताराम--"सुनो प्रजाजन! ध्यान से जिनको मिला इनाम-
नेहरू-मेनन की डगर यदि है तुम्हें पसन्द,एकसाथ हल्ला करो खूब मचाओ गन्ध।।24।।
हम सब हैं अब दर बदर झेल रहे अपमान,मत भूलो कर्तव्य तुम भूलो मत अहसान।।25।।
असन्तोष असहिष्णुता का कर करके जाप,जनता को भरमाइये गाल बजा कर आप"।।26।।
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चूहेदानी में फँसा चूहा हुआ उदास,टूटे टखने दाँत नख बची सास की आस।।27।।
इसे पेशबन्दी कहें या कि कहें संत्रास,रक्षा के होने लगे नये नये अभ्यास।।28।।
झूठ मूठ का भय दिखा मिर्च आँख में डाल,सौ सौ चूहे खा चुकी भगतिन भयी बिडाल।।29।।
लालू से माँगी शरण कम्युनिष्टों से हाथ,आँख दिखाई थी जिन्हें उनका माँगा साथ।।30।।
चीन चौक में देखिये इनकी सब करतूत,ममता के बंगाल में साँस रही अब टूट।।31।।
इन्हें शान्ति से क्या भला ! ये हैं रंगे सियार,राहुल बाबा सा मिला इनको नया शिकार।।32।।
मार काट के मार्ग पर चलने वाले लोग,इन्हें शान्ति सन्तोष का लगा देखिये रोग।।33।।
जिन्हें वर्ग संघर्ष का गया पढ़ाया पाठ,वे सहिष्णु बन घूमते मानव महा विराट।।34।।
घड़ियाली आँसू बहा ये नौटंकीबाज,सहिष्णुता के गीत हैं लगे सुनाने आज।।35।।
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सन् चौरासी में हुआ जो कुछ भी उत्पात,सहा देश ने शान्ति से सीने पर आघात।।27।।
कश्मीरी पंडित बने सहिष्णुता के पीर,घर छोड़ा पर देखिये धरे रहे वे धीर।।28।।
टाइटलर को भी कभी आयी नहीं खँरोच,दुर्जन सज्जन बन चले कभी न आयी मोच।।29।।
सहनशीलता के लिये इनको मिला इनाम,ये सांसद मंत्री बने नेता बने महान।।30।।
इनका धैर्य सराहिये करिये जय-गुणगान,चोर कहे कोतवाल को उल्टे पकड़ो कान।।31।।