फिर
से लो जुटने लगे तरह तरह के लोग, चारा
खा खा कर लगे जिन्हें अनेकों रोग ।।
दस या पन्द्रह साल
पर बदल बदल कर नाम, बोतल बदली जा रही वही पुराना जाम।।
खाल ओ़ढ कर भेंड़ की शेर न होता भेंड़, आज़ादी के बाद से हुआ बहुत यह खेल।।
चाल न बदली बदल कर
चोले सौ सौ बार, कर न सका कोई कभी जनता का उद्धार।।
एसपी पीएसपी बनी
जनतादली पचीस, राजद बीजद लोकदल (यू)(एस)जैसे बीस।।
बग्घी
अंग्रेजी दिखी केक पिछत्तर फीट, कृपलानी
जेपी रहे अपना मत्था पीट।।
लोहिया सिसकी भर ऱहे हँसें नरेन्दर
देव-देख कि कैसे भर रही किसकी किसकी जेब।।
कल तक भगवा थाम कर चलने वाले लोग,कुर्सी
पर काबिज हुये भोगें छप्पन भोग।।
दाल न गलती देख कर बदल लिया है रंग, हुआ
हुआ करने लगे मनवा हुआ मलंग।।
लोकसभा में ऊँघने वाले नेता आज पद की गरिमा भूल कर
साझा करते रा़ज।।
टीचर भर्ती का कोई चारे वाला अन्य, कोई
छूटा जेल का कोई जेल में धन्य।।
करके भर्ती पुलिसिया कर कर भ्रष्टाचार, लोहियावादी
शेखजी महिमा अपरम्पार।।
सोशलि़ज्म को कोसने वालों की औलाद, गलबहिंया
डाले दिखे लिये हाथ में हाथ।।
बहुत हुआ जोभी हुआ अब नचलेगी चाल, खिच़डी
पकी न आजतक गली न अबतक दाल।।
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