Thursday, January 1, 2015

हाँफ रहा कोतवाल !

हाँफ रहा कोतवाल !
जयपुर में मेला जुटा लेखक जुटे विशेष,रश्दी बाहर ही रहे मिला न उन्हें प्रवेश।
तस्लीमा बंगाल में घुसने से मजबूर,पीके पर बलबा मचा किसका कहें कुसूर??
सोचो कैसे देख कर कुछ रोचक कार्टून,पगलाये थे लोग कुछ खौल उठा था खून।
बहस चली लंबी बहुत बदली गयी किताब,पर पत्थर के देव का रक्खे कौन खयाल?
आओ थोड़ा सोचलें क्या है इनका मूल,क्या छोटी सी बात को दिया जा रहा तूल??
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लीलाओं के व्याज से देवजनों का स्वांग,क्या यह करना ठीक है याकि टोटली रांग??
हर उत्सव त्यौहार पर जब जब छपते कार्ड,उन पर क्यों छपते भला शिव गणेश से लार्ड?
इधर स्वांग फिर बैठ कर पीना उधर शराब,बिना पिये पीके बुरा या फिर स्वांग खराब??
ठप्पे प्लास्टिक के ढलें छपें सुनहरे देव,सड़कों गलियों में पड़े दिख जाते स्वयमेव।
मन भर जाता ग्लानि से उठता यही विचार,इस पर कोई क्यों नहीं करता कभी विचार?
तोगड़िया या भागवत या सिंघल श्रीमान्,इन्हें न यह लगता कभी देवों का अपमान?
कड़वी पर बातें खरी कबिरा गये बताय,निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय।
राजनीति से बीस गज ऊँची उनकी राय,हिन्दू मुस्लिम को गये एक साथ समझाय। 
"काँकर पाथर जोरि के मस्जिद लयी बनाय,तापर मुल्ला बाँग दे बहरा हुआ खुदाय़।
पाथर पूजे हरि मिले तो पूजूँ मैं पहाड़,या से तो चक्की भली पीस खाय संसार।।"
पहले बन्द कराइये लीलायें औ स्वांग,जगह जगह पर मूर्तियाँ मन्दिर ऊट पटांग।
अपना घर सम्भले नहीं औरों को ललकार,चोर डाँटता देखिये हाँफ रहा कोतवाल!!

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